आध्यात्मिक मार्गदर्शक - सतगुरू स्वामी ज्ञाननाथ जी ( मौजूदा गददीनशीन)

   


निराकारी जागृति मिशन रजि. के चौथे एवं मौजूदा गददीनशीन सतगुरू स्वामी ज्ञान नाथ जी महाराज का जन्म गांव बधौली, तहसील नारायणगढ़, जिला अम्बाला, हरियाणा में परमपूजनीय पिता स्वर्गीय श्री केशो राम एवं परमवंदनीय माता लाजवंती के घर शिव-रात्रि के दिन सन 1963 में हुआ। इनका बचपन का नाम करनैल सिंह था।

बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज की भविष्यवाणी

परमपूजनीय पिताश्री स्वभाव से ही धार्मिक वृत्ति के थे इसीलिए संतो-महात्माओं का घर में आना-जाना लगा रहता था। संयोगवश एक दिन शिव-रात्रि के पावन पर्व पर पिता श्री ने संत-महात्माओं को पावन हवन यज्ञ एवं भण्डारे पर आमंत्रित किया। भण्डारे के उपरांत संतो को विदायगी देने के समय प्रात: स्मरणीय स्वामी प्रियतम नाथ जी महाराज ने आपके माता-पिता को कहा कि तुम्हारा यह बालक एक दिन त्यागी-वैरागी और उच्चकोटि का सन्यासी एवं आत्मदर्शी संत महापुरूष बनेगा। यह भूले-भटके लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाएगा और आध्यात्मिक ज्ञान एवं परमात्मा को मिलने का मार्ग-दर्शन करेगा। बिल्कुल वैसा ही हुआ और वास्तव में यह सच सिद्ध हुआ कि संत वचन कभी न पलटे। स्वामी प्रियतम नाथ जी महाराज की भविष्यवाणी सच्ची सिद्ध हुर्इ।

बचपन से त्यागी-वैरागी वृत्ति

बचपन से त्यागी वैरागी वृत्ति होने के कारण मात्र 9-10 वर्ष की आयु में ही एक दिन आप घर-बार छोड़कर हुजूर बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज की चरण-शरण में आ गये। आपने नित्यप्रति पूजा-पाठ के साथ-साथ अनेकों धार्मिक सदग्रंथों का गहनतम अध्ययन किया। आप के अंत:करण में हमेशा यही उदगार उठते रहते थे कि आखिर वह कौन-सी हस्ती है जो इस सारी सृष्टि को एक सुव्यवस्थित ढंग से चला रही है। क्या हम ऐसी शक्ति का दर्शन-दीदार कर सकते हैं? आप हमेशा इसी तीव्र जिज्ञासा को अपने अंदर संजोये हुए इसी खोज में रहते थे। आप ज्यादातर एकांतसेवी और मौन रहते थे और किसी के ज्यादा आग्रह करने पर ही किसी से बात करते थे।

मालिक का आदेश

एक दिन आपने हुजूर बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज से नम्र निवेदन किया कि क्या मुझे जीवन में मालिकेकुल परमात्मा का कभी दर्शन होगा। बाबा जी ने काफी देर ध्यान करके कहा कि आपको जैसा हुक्म होता है करते रहो एक दिन आपके जीवन में अवश्य ऐसा आएगा जब आपकी यह इच्छा पूरी होगी और यह तीव्र जिज्ञासा शांत होगी। लेकिन गांव के कुछ प्रतिष्ठित लोगों एवं माता-पिता के आग्रह पर बाबा जी ने आपको वापिस अपने पैतृक गांव बधौली(नारायणगढ़) जाने का आदेश दिया और साथ में यह भी कहा कि आप पहले अपनी दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त करो फिर मेरे पास वापिस आ जाना।

आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत

बाबा जी की आज्ञा का पालन करते हुए आप अपने पैतृक गांव बधौली से दसवीं तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वापिस हुजूर बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज के पास आ गये। संयोगवश फिर वही शिव-रात्रि का पावन दिन आया और बाबा जी ने उस दिन गांव खेड़की, नारायणगढ़(अंबाला) आश्रम में श्रीमदभागवत महापुराण का पाठ रखा हुआ था और हवन-यज्ञ एवं भण्डारे का आयोजन भी किया हुआ था। इस भण्डारे में आस-पास के साधु-संतों को भी निमंत्रण दिया हुआ था। इसी शिव-रात्रि के पावन अवसर पर सभी साधु-संतो की मौजूदगी में आप ने भगवां चोला धारण करके सन्यास ले लिया और हुजूर बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज को अपना आध्यात्मिक गुरू मानकर उनसे गुरू-दीक्षा ग्रहण कर ली। संतो-महात्माओं ने नामकरण करके आपका नाम स्वामी ज्ञान नाथ रख दिया। इसके बाद आपका नाम करनैल सिंह की बजाए स्वामी ज्ञान नाथ पड़ गया। बस यहीं से ही आपका आध्यात्मिक जीवन शुरू हो जाता है।

शिक्षा और सर्विस

आपकी परवरिश ज्यादातर परमपूजनीय एवं परमवंदनीय माता त्रिवेणी नाथ और बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज की देख-रेख में हुर्इ। बाबा जी और माता त्रिवेणी नाथ जी महाराज का आपको भरपूर प्यार और दुलार मिला। दोनो ही आपको बहुत प्यार करते थे। उनके ही प्रयास और आशीर्वाद से आप अपने जीवन मे निरंतर सफलता को प्राप्त करते रहे। आपका बचपन, यौवन और पढ़ार्इ का समय बाबा प्रियतम नाथ जी और माता त्रिवेणी नाथ जी महाराज की चरण-शरण में बीता। आपको जीवन के हर क्षेत्र में प्रेरणा उनसे ही मिलती रही। आपने बारहवीं तक की शिक्षा गांधी मेमोरियल नेशनल कालेज, अम्बाला कैंट, हरियाणा से प्राप्त की।

सौभाग्य से आपकी सर्विस पी. जी. आर्इ. चण्डीगढ़ में लग गई। आपने नौकरी के साथ अपनी पढ़ार्इ भी जारी रखी और पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ से ग्रेजुएशन और फिर वकालत की डिग्री प्राप्त की। जैसा कि आपको हुजूर बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज का आदेश था कि आपने इसी भगवें चोले में ही रहना है और इसी सन्यासी के रूप में उच्च शिक्षा ग्रहण करनी है, साथ में अपनी कीर्त कमार्इ करनी है, किसी के ऊपर निर्भर होने की बजाए आत्मनिर्भर होना है। आप अपनी धुन के पक्के थे और आपने वह कर दिखाया जो बाबा जी ने आपको हुक्म दिया था। बाबा जी के आदेश-उपदेश की बाखूबी पालना करते हुए आपने इसी भगवें चोले में ही तकरीबन 23 वर्ष पी. जी. आर्इ. चण्डीगढ़ में पर्सनल सचिव के पद पर सर्विस की। आप छुटटी वाले दिन बाबा जी के पास अकसर आते रहते थे।

सतगुरू बाबा लक्ष्मण सिंह जी से मिलन

जब आप जी. एम. एन. कालेज, अम्बाला कैंट में पढ़ते थे उस समय आप गांव बोह(अम्बाला) में अपनी बड़ी बहन विमला देवी के पास रहते थे। इसी गांव बोह में महापुरूष बरखा राम के माध्यम से आपका परिचय सतगुरू शहनशाह हुजूर बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज से हुआ। क्योंकि बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज महापुरूष बरखा और बड़ी बहन विमला देवी के घर अकसर सत्संग फरमाने आते रहते थे। आपको भी बाबा जी के सत्संग में जाने का मौका मिल जाता था। आप बाबा जी के रूहानी सत्संग प्रवचनों को पूरी तवज्जो से सुनते थे। धीरे-धीरे आपके ऊपर बाबा जी के रूहानी सत्संग-प्रवचनों का रंग चढ़ने लगा।

सतगुरू बाबा लक्ष्मण सिंह जी में आस्था

हुजूर बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज हमेशा सत्संग प्रवचनों में यह फरमाया करते थे कि इस सारी सृष्टि का मालिकेकुल निर्गुण-निराकार एवं सर्वाधार परमात्मा हमेशा हमारे अंग-संग है। इस निर्गुण-निराकार परमतत्व को हम आत्मदर्शी सतगुरू की कृपा से पलभर में खुली आंखों से देख सकते हैं और इस अडोल एवं सर्वशक्तिमान परमात्मा का निरंतर ध्यान करते हुए जीते जी इसके साथ एकाकार होकर जन्म-जन्मांतरों की उलझी हुर्इ गुत्थी को सहज में सुलझा सकते है। क्योंकि इसके अलावा तमाम दृष्टिमान जगत परिर्वतनशील होते हुए भी वास्तव में नहीं है। जब आप हुजूर बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज के मुखारविन्द से यह बार-बार सुनते थे कि हम निर्गुण-निराकार परमात्मा का खुली आंखों से दर्शन-दीदार कर सकते है तब आप को बाबा जी के प्रति अटूट प्रेम और अडि़ग आस्था होने लगी और दिन-प्रतिदिन आप बाबा लक्ष्मण सिंह महाराज के दीवाने होने लगे। आपको यह विश्वास होने लगा कि मेरी उलझन का समाधान यहां जरूर होगा।

आप तकरीबन 15-16 वर्ष बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज के सान्निध्य में इस आमने-सामने, चारों तरफ हमेशा ज्यों-का-त्यों मौजूद निर्गुण-निराकार परमात्मा की चर्चा सुनते रहे। पी. जी. आर्इ. चण्डीगढ़ में एक विशाल संत-समागम का आयोजन किया गया। इस संत-समागम में सतगुरू बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज भी इस संत-समागम में शरीक हुए। जब संत-समागम सम्पन्न हुआ और संत-महापुरूषों की विदायगी का समय आया तो बाबा प्रियतम नाथ जी महाराज ने कहा कि स्वामी जी अब आगे जीवन में आपका मार्ग-दर्शन हुजूर बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज करेंगे।

मिशन को समर्पित जीवन

जैसे आपने सुना था और पढ़ा था कि जब परमेश्वर से मिलने की तीव्र जिज्ञासा होती है और दिल दर्शन करने के लिए व्याकुल होता है तब पारब्रह्म निर्गुण-निराकार परमात्मा स्वयं ही किसी तत्वदर्शी संत-महापुरूष का रूप धारण करके आता है और इस परम रहस्य को खोलकर समझाता है। वास्तव में आपके साथ ऐसा ही हुआ निर्गुण-निराकार परमात्मा स्वयं ही सतगुरूदेव बाबा लक्ष्मण सिंह जी महाराज के रूप में आपके पास चण्डीगढ़ आए और आपको इस ओत-प्रोत निर्गुण-निराकार परमात्मा का ज्ञान कराकर इसका बोध कराया। उसी दिन से आप इस निर्गुण-निराकार परमात्मा के ध्यान एवं प्रचार-प्रसार में जुट गये।

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